हिंदी
सिनेमा:दलित–आदिवासी विमर्श
दो-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी
आयोजन तिथि : 5 और 6 अक्टूबर, 2015
आयोजन स्थल : संगोष्ठी कक्ष, मानविकी संकाय, हिंदी विभाग, पांडिचेरी विश्वविद्यालय,
पांडिचेरी 605014
पंजीकरण शुल्क :
शोधार्थी-500 रू. और अध्यापक आदि-1000 रू.
शोध पत्र :
शोध सारांश भेजने की
अंतिम तिथी: 25 जुलाई
2015
संपूर्ण शोध पत्र जमा
कराने की अंतिम तिथि: 31 अगस्त 2015
ध्यातव्य है कि समय
अभाव की स्थिति में चयनित शोध पत्र प्रस्तुतकर्ताओं को ही संगोष्ठी में संपूर्ण
आलेख प्रस्तुति की अनुमति दी जायेगी और शेष शोधपत्र प्रस्तुतकर्ताओं को अपना शोध सारांश प्रस्तुत
करना होगा।
आवास व्यवस्था
शोध छात्र-छात्राओं हेतु संगोष्ठी के दौरान आवास की व्यवस्था विश्वविद्यालय
के विभिन्न छात्रावासों में विद्यार्थी अतिथि के रूप में की जायेगी। अध्यापक और
अन्य प्रतिभागियों के आवास व्यवस्थापन में विभाग मार्गनिर्देशन करेगा।
संपर्क सूत्र :
आवास और आवागमन
हेतु: डॉ. सी. जयशंकर बाबू, 9843508506, babu.pondicherryuniversity@gmail.com
पंजीकरण हेतु:
जयराम कुमार पासवान, 9042442478, jairamkrpaswan@gmail.com
संगोष्ठी
प्रस्तावना
हिंदी विभाग, पांडिचेरी विश्वविद्यालय द्वारा ‘हिंदी सिनेमा: दलित-आदिवासी विमर्श’ विषय पर प्रस्तावित राष्ट्रीय संगोष्ठी के
आयोजन के पीछे आम भारतीय व्यक्ति के मन में हिंदी सिनेमा के प्रति आकर्षण को तो
दृष्टि में रखा ही गया है किंतु साथ ही समकालीन दलित-आदिवासी विमर्श की
प्रासंगिकता ने भी विषय चयन में हमारा
मार्गदर्शन किया। एक लंबे समय तक
हिंदी सिनेमा भारतीय विशेषत: हिंदी के
साहित्यिक अकादमिक जगत के लिए
अछूता रहा क्योंकि लोकप्रिय कला माध्यमों का अध्ययन क्लासिकल साहित्य के आभिजात्य
रूचि संपन्न अध्येता करना पसंद नहीं करते थे। इधर कुछ समय से सिनेमा के बढ़ते
वाणिज्यिक महत्व को देखकर और इसमें निहित व्यापक जन अपील की क्षमता से प्रभावित
होकर सिनेमा के अध्ययन-अध्यापन की बाढ़ सी आ गई है। लेकिन अभी अकादमिक जगत का
ज्यादा ध्यान सिनेमा के ऐतिहासिक-वाणिज्यिक अध्ययन और उसकी संप्रेषणात्मक भाषाई
संरचना पर ही मूलतः केंद्रित है। दलित और आदिवास दृष्टिकोण से हिंदी सिनेमा को
देखने के इक्का-दुक्का वैयक्तिक प्रयास ही लघु स्तर पर हुए हैं। आज जब साहित्य के
शोध क्षेत्र में दलित-आदिवासी विमर्श एक मुख्य विषय के रूप में क्रमश: उभर रहा है, तो
ऐसे में आवश्यक हो जाता है कि हिंदी सिनेमा में भी दलित और आदिवासी जीवन के चित्रण
का अवलोकन किया जाये। प्रस्तुत संगोष्ठी में यह अवलोकन दलित और आदिवासी की नजरों
से किया जाना अपेक्षित है।
संगोष्ठी में प्रस्तुत किये जाने
वाले शोधपत्रों के विषय :
*
हिंदी सिनेमा के परदे पर अनुपस्थित दलित –
आदिवासी यथार्थ
*
तथाकथित उच्च जातियों द्वारा दलित-आदिवासी
का दमन-उत्पीड़न
*
गाँधीवादी दलित उत्थान और जातीय राजनीति का दुष्चक्र
*
सर्वहारा के रूप में दलित-आदिवासी
*
स्वानुभूति-सहानुभूति और सिनेमाई बाज़ार का
अर्थतंत्र
*
दलित-आदिवासी स्त्री की त्रासदी और बड़ा
पर्दा
*
दलित-आदिवासी के संदर्भ में राष्ट्रवाद की
आर्थिक-सांस्कृतिक परियोजना का प्रचारक या प्रतिरोधक हिंदी सिनेमा
*
दलित-आदिवासी साहित्य के सिने रूपांतरण की
समस्याएँ
*
हिंदी सिनेमा का डॉक्यूमेंट्रीय जगत और
दलित-आदिवासी चित्रण
*
हिंदी की दलित-आदिवासी कार्टून फिल्में
*
गैर हिंदी सिनेमा में दलित-आदिवासी पदचिन्ह
ध्यातव्य है कि
उपर्युक्त विषय प्रतिभागियों की सुविधा हेतु निर्धारित किये गये हैं। आप अपने
विवेक से संगोष्ठी के मुख्य शीर्षक विषय के साथ न्याय करते हुए कोई और विषय भी
अपने शोधपत्र के लिए चुन सकते हैं किंतु ऐसे विषय से संयोजकों को पहले अवगत अवश्य
करायें।
हिंदी
सिनेमा:दलित–आदिवासी विमर्श
दो-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी
5-6
अक्टूबर 2015
संरक्षक – प्रो. चंद्र कृष्णमूर्ति, माननीया
कुलगुरू, पांडिचेरी विश्वविद्यालय
आयोजक : हिंदी विभाग
पांडिचेरी विश्वविद्यालय, पांडिचेरी
संगोष्ठी
संयोजक
डॉ. प्रमोद मीणा – डॉ. सी. जयशंकर बाबू
संगोष्ठी समन्वयक
डॉ. एस. पद्मप्रिया, विभागाध्यक्ष, हिंदी विभाग