गुरुवार, 31 अक्तूबर 2013

अग्निध्वजा: स्त्री और दलित की पीड़ा - सुरेश कुमार



अग्निध्वजा: स्त्री और दलित की पीड़ा
-सुरेश कुमार
समाज की तमाम समास्याओं से टकराते हुए युवराज सोनटक्के का काव्य संग्रह अग्नि ध्वाजानई चेतना समाज में जाग्रत करता है। इस काव्य संग्रह में चालीस कवितायें संकलित है। कवि ने केवल कविता ही नहीं लिखी है बल्कि चिंतन भी किया है। कवि का यह चिंतन समाज को समता स्वतंत्रता और राष्ट्रीयता की ओर समाज की लाने का संकल्प है। कवि अपने काव्य चिंतन की शुरूआत मां कविता से करता है। समाज में व्यक्त सामाजिक विषमता के कारण प्रत्येक मनुष्य का दम घूटा जा रहा है। इसी एहसास को कवि ने अपनी मां कविता में व्यक्त किया है। कवि मां से कहना है -
मां! कोख में ही अंतडियों के फन्दे से
गला मेरा घोट दिया होता
तो जन्म के पहले ही मान लिए होते
अपरंपार महान तेरे उपकार (पृष्ठ-27)
युवराज सोनटक्के समाज की रूढि़या और परम्परा से भी दुखी है। इक्कीसवी सदी में पहुंच जाने के बाद भी हमारे देश से अंधविश्वास सामाजिक परम्पराओं की संस्था जस की तस खड़ी है। कवि अपनी मां से शिकायता करता है -
पंरपरा से
विषमता के प्रखर उक्त अंगारों पर
हमें फेंकने से पहले
समता स्थापित करने के लिये तु बाझ ही रही होती (पृष्ठ-28)
हम देश की सबसे बड़ी विड़मना है कि सामाजिक विषमता के खिलाफ कोई विगूल नहीं फूका जाता है। समाज सेवियों के द्वारा खाली शोर मचाया जायेगा कि आगे से किसी के साथ सामाजिक भेदभाव नहीं होने देंगे।
भारतीय समाज में स्त्री और दलित का खूब शोषण हुआ है। युवराज सोनटक्के मां कविता में स्त्री पीड़ा को खुलकर उजागर किया है-
तू सिसकती रही निराशा के जंगल में तनहा होकर
फिर भी रखा तुने परिवार के विश्वास को दृढता से बांधकर
आंसुओं को प्रश्न कर बार-बार लगातार
तु बनी रही मां शान्त निश्चल
जैसे करता है गगन में विचरण धवल सौम्य बादल (पृष्ठ-30)
फिर भी छिपाती रही अपनी आंखो से आने वाले संयुक्त आंसुओं का जन एक जिम्मेदार कवि होने के कारण युवराज सोनटक्के ने अपनी इस कविता में तमाम स्त्रियों के दुख की उजागार कर गये है। स्त्री चाहे दक्षिण भारत की हो या उत्तर भारत की हो सब के दुख-दर्द तो एक जैसे है।
समाज में व्यक्त जाति भेद ऊंच नीच की भावना ने कभी दलितों को नहीं बढ़ने दिया है। युवराज सोनटक्के ने गुंगी हस्तीकविता में समाज का दुख दर्द उजागार किया है।
उनकी बिछाई हुई योजना बद्ध राहां पर
उपेक्षित सांसे रेंगती रही कल तक
उन निराधारों सांसो के झोको के संग
मूक अस्तिव मेरा झूलता रहा पेण्डुलम के समान (पृष्ठ-35)
दलितों पर असामाजिक सहितायें लाद कर उन्हें अभिशाप्त जीवन जीने के लिये विवश किया गया था। इस विषमता की चक्की में पिसकर दलितों का अस्तित्व ही मिट गया है। डॉ.
 अम्बेडकर की प्रेरणा से दलित समाज अपने अस्तिव की लड़ाई को लड़ रहा है-
विषमता के जुल्म की चक्की में
संदलित किया गया दलितों का जीवन
उन्होनें पिरोई हुई धुमावदार रस्सी से
खूंटे पर टाग कर रखा
तबसे मेरे लहू से भीगे हुए उग्र घाव
आपस में क्रान्ति की भाषा बोलने लगे (पृष्ठ-36)
दलित विमर्श की दृष्टि से ये पक्तियां इस काव्य संग्रह की श्रेष्ठ पक्तियां कही जा सकती है। दलित चेतना से युक्त और अधिकारों के लिए अवह्मन करती ये कविता है।
कवि ने दलित समस्यों के साथ-साथ स्त्री की समास्यां को अपनी कविताओं का विषय बनाया है। स्त्री पर आत्याचार कवि को बर्दाशात नही है। इसके लिए कवि क्रान्ति करने के लिये भी तैयार है। क्रान्ति घन कविता में युवराज सोनटक्के ने स्त्री की पीङा का बखूबी समाज के सामने रखा है-
जुल्मखोरों द्वारा ध्वस्त हजारों
गरीबों के यौवन की रंगोलियों
और कितनी दी अबलाओं के शरीरों पर अंकित
वासनाओं की रेखाओं को देख कर
जलते हुऐ मेरे मन में
दुख की बरसात की धारा चलह कदमी कर रही हैं
और हृदय से सिसकियां की वर्षा हो रही है। (पृष्ठ-59)
डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ने दलित के अधिकारों की लड़ाई लड़ी थी। उन्हीं के चिंतन के कारण दलित समाज आज प्रगति के पथ पर है। युवराज सोनटक्के के प्रेरणा स्रोत डॉ. अम्बेडकर और जोतिबा फूले है। कवि ने अग्निध्वजा कविता का ताना-बाना बाबा साहेब के मूल्य उद्देश्य को लेकर बुना है-
हाथों में अग्निध्वाजा
और आंखों में शोषितों के
आंसू लेकर
गर्थस्थ गंगन से
बाहर आ संभालकर
जोतिबा फूले के फुत्कार से
और अम्बेडकर के आवेश से
मूसलाधार बरस (पृष्ठ-63)
डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर ने दलित और स्त्रियों के अधिकारों की सबसे बड़ी लड़ाई लड़ी थी। बाबा साहेब ने स्त्री गरिमा के लिए हिन्दू कोड बिल बनाया था। लेकिन विरोध के चलते हुए हिन्दु कोडबिलउस समय संसद में पारित नहीं हो सका था। बाबा साहब ने स्त्रियों के लिए कर्बानी देते हुए कानून मंत्री पद से स्तीफा दे दिया था। युवराज सोनटक्के ने अग्निपुरूष बाबा साहेब अम्बेडकर कविता में अम्बेडकर वादी चिंतन पर मनन किया है -
आपके बुलंद क्रान्तिकारी फलक अब भी थरथरा रहे है
निष्ठावान अनुयायी आपके दाहक शब्दों को गोद में लेकर (पृष्ठ-89)
दलितों का शोषण सामाजिक आर्थिक विषमता के आधार पर हुआ है। उन्हें किसी प्रकार के अधिकार इस समाज में प्राप्त नहीं थे। बाबा साहेब ने सामाजिक भेदभाव के खिलाफ जमकर विद्रोह किया था।
युवराज सोनटक्के अपनी इतिहास परम्परा से जुड़े रहने वाले कवि है। उन्होंने अपनी दीक्षा भूमि कविता के माध्यम से दलित समाज को इतिहास से परचित कराया है-
सिद्धार्थ बुद्ध एवं अम्बेडकर के हम है अभिमानी संतान
गौरव गाथाओं से जिनकी गूंज उठता दीक्षा का मैदान (पृष्ठ-106)
कवि भारतीय दर्शन से परेशान है क्योंकि यह दर्शन इतना जटिल बना दिया गया है। इसको समझने के लिये  एक वैज्ञानिक को माथापच्ची करनी पड़ रही हैं। युवराज सोनटक्के मूलतः एक वैज्ञानिक है, इसीलिये वे ईश्वर जनजाल से छुटकारा पाना चाहते है। है। युवराज सोनटक्के ने ईश्वर कविता में विचार व्यक्त किया है- -
बचपन में पढ़ाया गया मुझे
ईश्वर रहता है सवार
सात धोड़ों के रथ पर
गोल मुखड़ा दो आंखे और काली मूंछ होठों पर (पृष्ठ-107)
ईश्वर क्यां है ?कवि खुद अपने शब्दों में बताता है-
ईश्वर के विरोध में मैनें कविता लिखना जाहिर किया
तब उन्होंने मुझे अज्ञान के अवार्त में कैद किया
अज्ञान का दुसरा नाम है ईश्वर (पृष्ठ-108)
कवि ने इस कविता में ईश्वर पर प्रश्न चिन्ह लगया है। 1914 में कवि हीरा टोम ने सरस्वती पत्रिका में अछूत की शिकायतकविता में ईश्वर के अस्तित्व पर प्रश्न उठाया था। तब यह परम्परा बिहार से होकर कन्नड़ तक पहुंच चुकी है। युवराज सोनटक्के ईश्वर से पूछते है -
हे ईश्वर, बौद्धिक अपंगत्व स्वीकारने वाले स्वार्थीजनों ने
गरीबों को फंसाने हेतु
निर्मित तेरे नाम की कल्पना को
स्वरों और व्यजनों की लिपि में ही मर्यादित किया
समस्त नियमों की जिम्मेदारी से तुझे मुक्त किया
ईश्वर नाम की महामारी फैलाने से तेरे जाहने वालों ने
अनेक मनुष्यों के मन जहरीले किये -(पृष्ठ-109)
अग्निध्वजा काव्य संग्रह में स्त्री और दलित समाज के दुखः दर्द को कवि ने उजागर किया है। इस काव्य संग्रह की कविताएं स्त्री और दलित चेतना से पुरी तरह से लैस है। इस काव्य संग्रह को पढ़ते समय कवि की भाषा थोड़ी कठिन लगती है। मगर, कविताएं सरल है। युवराज सोनटक्के की कवितायें समाज के समक्ष कई प्रश्न छोड़ती हैं ? जिन पर विचार किया जाना चाहिए।

(पुस्तक का नाम:- अग्निध्वजा, लेखक-युवराज सोनटक्के, प्रकाशक- शाश्वत प्रकाशन,172 मल्लान्तहल्ली बैंगलूर-560056, संस्करण-2011, मूल्य 100, पृष्ठ-111)
सम्पर्क -सुरेश कुमार, शोध छात्र, बी-1/56, सेक्टर-एच, अलीगंज, लखनऊ।












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